मैं विधवा हूँ — पर क्या सिर्फ इसी एक शब्द से मेरी पूरी पहचान तय हो जाती है?
मैं भी किसी का साथ चाहती हूँ, फिर से हँसना चाहती हूँ, फिर से जीना चाहती हूँ।
क्या कोई है जो मुझे मेरे अतीत से नहीं, मेरे दिल की सच्चाई और मेरे भविष्य की उम्मीदों से अपनाएगा?
क्या कोई मुझसे शादी करेगा — इंसानियत के नज़रिये से, समाज की सोच से नहीं?"
मैं विधवा हूँ — लेकिन सिर्फ एक रिश्ता खत्म हुआ है, मेरा जीवन नहीं।
मैं आज भी प्यार की हक़दार हूँ, सम्मान की हक़दार हूँ।
क्या कोई है जो मुझे मेरे गुज़रे कल से नहीं, मेरे सच्चे दिल और आने वाले कल से अपनाएगा?
क्या कोई है जो मुझसे शादी करेगा — सिर्फ हमदर्दी से नहीं, दिल से?"
मैं विधवा हूँ — मगर क्या इसका मतलब ये है कि मेरी ज़िंदगी रुक गई है?
मैं भी हँसना चाहती हूँ, प्यार पाना चाहती हूँ, और फिर से किसी के साथ एक नई शुरुआत करना चाहती हूँ।
क्या कोई है जो मेरे अतीत को नहीं, मेरे दिल को अपनाएगा?
क्या कोई है जो मुझसे शादी करेगा — सिर्फ एक ‘विडो’ नहीं, एक औरत, एक इंसान समझकर?"
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